गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

abhgli

हम ओकरा पहिल बेर एक्क्युप्रेसर सेंटर में देखलियैक .दस -एगारह वर्षक उमरी हेतैक .ओ लड़की क चेहरा पर हरदम मुस्कान रहिते छलैक .हं जखन कियो ओकरा दिस ध्यान सं ताकैत छलै त ओ सतर्क भ मुस्कुरेनाई छोडि क गर्दन लिबा लेईत छल .ककरो सं ओकरा मतलब नहि छलैक, मुदा डाक्टर साहेब के प्रति ओकर लगाव सब गोटे बुझैत छलीयेक .ओ कखनहु हुनकर मफलर झिक लएत छल या हुनकर ओंजर उठा क अप्पन हाथ क ध रखैत छल .तखन ओ अप्पन माय दिस तकैत छल ,ओम्हर सं माय गुरैर क ओकरा दिस तकैत छलै त ओ ठामाही समान राखि दैत छल .ओकर माय के पहिरब -ओड्हब सं स्पष्ट छल की ओ धनाढ्य घरक लोग छैक .आस-पास के लोग सं निर्लिप्त ओ बेसी काल अप्पन मोबाईल में व्यस्त रहैत छली .हं कखनो काल कहि उठैत छल, डाक्टर साहेब इसे जल्दी से पॉइंट लगा दीजिये इसकी मिस घर आ के लौट जाएगी .संयोग सं एक बेर हम्मर बारी के बाद ओकरे नम्बर छलैक चूँकि हमरा कोनो हड़बड़ी नहि छल तैं हम ओकरे अगुआ देलियैक .हमर अहि योगदान सं ओ महिला प्रसन्न भेलि ,आ ओ ओहि कन्या क विषय में कहलक जे ,ओकरा तीन टा बेटिय छैक .इ सब सं छोटकी छल . दू बेटी के बाद ,जखन ओ फेर सं गर्भ धारण केलि त आई कालक रेवाज क मोताबिक ओ जाँच करोली ,जहि में कन्या भ्रूण क रिपोर्ट एलैक .से ओकरा मंजूर नही छलैक तैं ओ दवाई द्वारा गर्भपातक प्रयास केलक जे सफल नहि भेलैक .तखन ओ डाक्टर के गर्भपातक इच्छा कहलकै मुदा आब ओ संभव नहि छलै .ताहि सं ओक्कर जानक खतरा छलैक .तखन ओक्कर सासू के अप्पन बेटी मोन पड़ लई ओ विवाहक दस वर्षक बादो निःसंतान छल .तखन विचारल गेल की कियैक ने इ कन्या हुनके दय देल जाय .अस्तु जनम्तहि ओ कन्या अप्पन माय सं बिछड़ी गेल! नवजात चूँकि सुन्दर छल तैं आरम्भ में ओकरा दुलारल गेलै ,लेकिन किछुए दिन बाद दुटा एहन घटना भेलैक जे ओकर जीवन नर्क बनी गेलै .ओकर पोस माता के बेटा भय गेलैक आ ओ कन्याक हाव -भाव सं लोग के भुझा गेलैक जे लड़की क क्रिया -कलाप स्वभाविक नहीं छैक .दवाइक दुस्प्रभाव सं ओक्कर दिमाग के पूर्ण विकास नहीं भय सकलै जाही कारने ओ दस वरसक रहितो ,क्रिया -कलाप चरि बरखक नेंना सन करैत छल . संयोग सं किछु वर्षक बाद ओहि कन्याक माय अप्पन ननदि ओहिठाम गेली ,माइक नजर बेटी पर होइत कदाचार के भंपि गेल .ओ ननदि सं अप्पन बेटी के लौटाबय क गप्प कयली ,ननदि त यैह चहिते छल ओ एकरा वास्ते तुरत तैयार भय गेल .ओ पुनः अप्पन माय -बाप लग आबि गेल . मुदा कहई ने छई ,कपार संगहि जेतों .सैह ओकरा संगे भेलई .माय हक़ सं बेटी के आनि त लेलकई मुदा ओ स्नेह नहि द सकलै .लोकक या अधिकतर महिलाक ई स्वभाव होइत छैक जे ,हम अप्पन नेन्ना के मारी त मारी लोक नहि किछु करेअ . ओहि बालिकाक जीवन गाथा सुनि क मोन व्यथित भ गेल .ओकर माय डाक्टर के कह लग्लै ,आपसे इतने दिन से ईलाज करवा रहे हैं कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है ,इसे तो रंग की भी पहचान नहीं है . डाक्टर तुरत्ते एक गोट लाल रंगक वस्तु ओकरा देखा क पुछल्खिन ,बेटा बोलो तो ये किस रंग का है ?बालिका तुरंते जवाब देलकै लाल ! माय चकिते रहि गेलैक ,लेकिन एक शब्द प्रोत्साहन के नहि बाजल भेलनि .अर्थात सब के बुझा गेलै जे ओ महिलाक लग अप्पन एहन संतानक लेल कोनों समय नहि छैक .स्पस्टे कहली जे हमरा में ओतेक धैर्य नहि अछि जे अहि पागल संग हम समय बर्बाद करब .एक टा टीचर राखि देने छियैक वैह शायद सिखौने हेते .आ जौं अहि डाक्टर बुते ठीक नहि भेलनि त हम एक्रर इलाज वेल्लोर में सेहो करेबाक विचार अछि .ओक्कर बोली में अहंकार छलै .हम अप्पन मोन में यैह सोचल्हूँ ,जे ओ कन्या के हक़ छैक से आहां नहि द सकलियै त आहां कतबो पइसा कियेअ ने खर्च करब, ओ व्यर्थे होयt.