सोमवार, 18 नवंबर 2019

बरुआ मांगे बाईक

बरुआ मांगे बाईक

उपनैन खूब धूम धाम सं मनाबी,एहन सपना  लोग देखईत अछि, सेहो लोक जे गाम में रहैत त नहि छथि मुदा जे एखनो अपन जन्मस्थान सं जुड़ल   छथि आ ईच्छा छनि जे हुनकर बालो बच्चा गाम सं जुड़ल रहनि।मुदा आई काल्हिक बच्चा ने जनऊअक  महत्व नहि बुझई छैक आ ने टीकक आवश्यकता ।माथ पर  टीक,आ कान पर जनेऊ लपेट क लधुशंका केनाई , ई आबक समय में  बहुत कम देखाईत अछि, विशेष क युवा जन मे ,हुनका    लाज होई छनि। अपन संस्कृति क प्रति हीन भावना ,ई मिथिलाक लेल दुर्भाग्यपूर्ण छैक।ओ सब अतेक ताम झामक कोनो प्रयोजन नहि बुझई छथि। तैं ओ कहैत अछि,
इससे अच्छा मुझे एक बाईक दिलवा देते।
बच्चा के ई कहनाई  हमरे सबके ऐना देखेनाई अछि। शहरी एकल परिवार के बच्चा,जकर दुनिया माय बाप,भाय बहिन तक  सीमित भेल जा रहल  अछि, ओ सब कखनो काल हफ्ता दस दिनक लेल गाम गेले सं की   ओ  बाबा बाबी,च्चा चाची के गेस्ट बुझईत अछि।ऐना में ओकरा अपन गाम, परिवार सं लगाव कियैक हेतई ?
एखुनका समय संक्रमणकाल अछि |तेजी स बदलैत विचार धारा ,रहन –सहन ,खान –पीन,स्थान- परिवेष |लोग दुविधा में पड़ल अछि |करी त की करी ?एकदम्मे आधुनिक बनल जाय ,या सनातन व्यवस्था के पकड़ने रहि ?अप्पन परम्परा के छोड़नाई उचित नहि छैक मुदा ओहि मे जौं किछु संशोधन केला सं जौं एकर मूल स्वरूप अथवा उद्देश्य मे कनेको अंतर नहि बुझाइत होइ त किछु फेर बदल हेबाक चाहि, विशेषतः समयाभाव क कारण।ओना त,बंसकट्टी सं, शुरुआत एक  मासपहिने कैल जाइ छई,मुदा अगर सबटा विध व्यवहार एक सप्ताह तक समटा जाई त,नोकरीहारा लोग के सुविधा होयतैक। मैथिल ब्राह्मण सब अपन गाम छोड़ि बाबाधाम या हरिद्वार में उपनैन करय लागल छथि। कारण समयाभाव त छहिए दोसर दिनों-दिन  यज्ञोपवीत संस्कार,आब अपन वैभव प्रदर्शन -आयोजन भेल जा रहल अछि।एखन परिस्थिति ई भेल जा रहल अछि जे सामर्थ्य नहियो रहला पर देखा देखी में आदमी खर्चक चक्की में पिसा जाईयै। तैं ओ एहन परिस्थिति सं बचबा क लेल बाबाधाम क शरण में जाय लेल मजबूर अछि।
कोनो संस्कृति, भाषा, व्यवस्था,तखने दीर्धकालीन होईत छई जखन ओ  समयाकूल परिवर्तन के स्वीकार करैत अछि। अपन गाम क आयोजन सन शोभा-सुंदर,आनठाम कतय?

जीवन संध्या क धुरंधर

 यौ,जीवन संध्या क धुरंधर जन,
की  करैत छी ?
समाज बिगड़ल जा रहल अछि ।कोनो समाजक मूल तत्व, समाज सं समाजिकता समाप्त भेल जा रहल अछि। लोग समाज में रहितो एकाकी अछि।ककरो सं  कोनो मतलब नहि । पाबनि तिहारो  में लोग घरे में रहैत अछि ।सब अपन  अपऩ खोल में बंद रहैत अछि।   ,किनको धन क अहंकार, बल क अहंकार, ज्ञान क अहंकार। मुदा जीवन में धन -धान्य के अलावा बहुत किछु छईक।  अपन मोनक द्वार खोलू , आगां होउ, अप्पन खोल सं बहराऊ ने पहिने लोग समाजिक छल ,कारण मरला क बाद चारि गोट कनहा देनहार क उम्मीद करैत छल।मुदा 'मार बाढ़ैन ई अपार्टमेंट, संस्कृति आ एकल परिवार  प्रथा  के' ।आब त पड़ोसी क घर में किछु घटना घटैत छैक‌, ऐम्बुलेंस आबि क डेड बौडी ल क  मॉर्गन में , डाहि दई छई, कियो बुझलक कियो नई बुझलक।

सुधि जन कनेक विचार करई जाउ।
हम समाज स की चाहैत छी?
हमरा  समाज सं की भेटल?
हमरा समाज सं की दिक्कत अछि? अंत में,
 हम समाज के की देलियई ?,‌‌‌‌
 ओना ,हम सड़क के कात में नहि ,जंगल में नहि ,समाजक बीच रहय चाहैत छी। कारण समाज में हम सुरक्षित रहैत छी।समाजक लोग सुख दुःख में संग रहता से उम्मीद करैत छी। समाज, लोग के अनुशासित करैत अछि ,आहां अनर्गल किछु नहि क सकैत छी‌,कियो रोकनहार ,टोकनहार भेटिए जायत ।
जौं कोनो समस्या होईत छल ,पहिने व्यस्तता छल ,आब आहां फुरसत में छी,त समस्या क निदान करू ने ,
आगां धिया पुता के वैह परेशानी नहि होईनि।
महानुभाव आहां स़बगोटा अपन अपन क्षेत्र के धुरंधर रहल छी। अहीं सं  ऐहन उम्मीद कियै, कोनो युवा सं कियैक ने ?कारण आजुक युवा अपन जीविकोपार्जन मे हरान अछि।ने ओ समय पर खाई यै ने सुतैया,ओकरा सं कोनो अतिरिक्त काजक उम्मीद नहिए करी।आहां लोकनि कोनो युवा सं अधिक उर्जावान छी, रिटायरमेंट के बाद फुर्सत में छी।'ई लुत्ती लगौना मोबाइल ,ने अपने चैन सं रहत न ककरो रहय देत । त्यागू अहि जहरबंद  के ,अपन उर्जा, ज्ञान, अनुभव के सार्थक दिशा देलजाउ। समाज सदैव आहां के ऋणी रहत।